Mumbai ki thand
ये मेरी मुंबई को क्या हो गया लतपत थी पसीने में आज काँप रही है ठण्ड में कभी धुप में जलती थी पावों के नीचे झुलसती थी आज रज़ाई ओढ़कर सो रही है कल जिसके सूरज ने रखा था सर पर हमारे एक हाथ आज बादलों के आँचल में है छुपी उस छोटी सी चिड़िया को जिसने उठने का दिया बहाना आज खुद रौशनी से कतरा रही है कटिंग चाय पर मिलती थी नुक्कड़ पर , कभी गलियों में भी आज बिन कुछ कहे बगल से गुज़र रही है एक ब्रांड वाली नयी हूडि ओढ़े मुँह ढककर निकल रही है ये मेरी मुंबई को क्या हो गया है !